मिलो कभी खुद से |weekendpoetry

ये सुनसान गलियां और रातें
बताओ यहाँ तुम्हारा कौन है
किसकी तलाश में भटक रहे हो
हर दम बेफ़िक्र, बेख़बर हो कर के

मिलो कभी खुद स
ज़माने में रखा क्या ह
तज़ुर्बे की बात करो अपन
यहाँ गलियों में भटक कर किसी को मिला क्या ह

कहानियाँ बनाओ खुद क
इतिहास के पन्नों में तो बस कुछ ही नाम है
ठोकरे सभी ने खाई है अपने हिस्से क
बस अब आने वाले कल में एक तुम्हारा नाम ह

माना ख्वाइशें तुम्हारी आज भी क़ैद है
पर छुपाओ न खुद से खुद ह को
बहाने तो बना लिए लाखों आज तुमने
अब आने वाले कल का भी क्या वही हश्र है?

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सब फ़ितरत ही तो है |weekendpoetry

तेरा फिर ये लौट कर ना आना
हर मंज़र से मिलकर मुस्कुराना
सहमे से दिल को एक सुकूं मिल जाना
सब फ़ितरत ही तो है

हर लम्हें में अब ख़ुद को पाना
जिंदगी में अब कोई वजह आ जाना
हर इरादों में अब जान लगाना
सब फ़ितरत ही तो है

हार कर भी अब खड़ा हो जाना
टूट के फिर हक़ीक़त से रू-ब-रू हो जाना
रूठे को अब क्यूँ हिं मनाना
सब फ़ितरत ही तो है

कुछ यूँही चाहता था तेरा हो जाना
जिंदगी में अब कुछ रंग आ जाना
मिलकर भी बस अब यूँही मुस्कुराना
सब फ़ितरत ही तो है।।

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अधूरी सी है |weekendpoetry

यादें ही तो हैं जो साथ हैं
अब तुम ना हो, सब अधूरी सी है

तुम थे तो मुस्कुरा देते थें यूँही की बातों पर
अब हाल-ए-दिल पर हँसी निकले वो भी अधूरी सी है

क्या खोना क्या पाना, तुम मिले जरूरतें पूरी सी थीं
अब लूट जाए ये जमाना, जो हसरतें अधूरी सी है

हमने ख़ूब अपनाएं तरीक़े अपने
पर ये इश्क़ मुकम्मल कहाँ, अधूरी सी है।।

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न रोके कोई |weekendpoetry

न रोके कोई
रोके से भी न रुकूँ मैं
ये सफ़र तन्हा है
तन्हाइयों में भी न झुकूं मैं

बहुत रात बिताएं हैं सपनों में
बहुत लड़ा हुँ खुद से खुद हि के लिए
मौक़ा मिले तो कर दिखाऊंगा
इन छोटी सी परेशानियों से न झुकूं मैं

छोटे शहर से ख़्वाब बड़े लेकर
निकला तो था बस जीने
अब काम बड़ा है, बस नाम बड़ा है
देख लिया मैंने सब कुछ खो के

ना कोई रोके मुझे अब
रोके से भी न रुकूँ मैं
अब ख़्वाब हैं आंखों में बहुत बड़े
अब आस है खुद से बहुत बड़े।।

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बोलो अब करें क्या ।weekendpoetry

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मैंने बोला था शायद तुमने सुना न होगा
पर तुम्हें सुन कर भी अनसुना करते देखा है मैंने
मुझे इश्क़ है तुमसे मैंने हज़ारों दफ़ा बोला होगा
पर मेरे इश्क़ में रह कर भी तुम्हें किसी दूसरे के बातों पर हँसते देखा है मैंने।।

नादान ये दिल होगा, अफ़सोस बस है इसी बात का
नादान पर तुम तो न थी
परेशां तो रहा मैं ताउम्र तुम्हें ले कर
लेकिन थोड़ी सी भी इल्म तुम्हें कहाँ थी।।

ज़रा बता दो तुम अब जाते जाते
हम अब करें क्या
दुनियां तो बदल सकते नहीं
क्या फिर से खुद को बदल लें?

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ये इश्क़ है, कभी सही तो कभी गलत हिं रहेगा|Weekendpoetry

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हम तुम्हारे जिंदगी के पन्नों में हों न हों,
ये इश्क़ है, कभी सही तो कभी गलत हिं रहेगा।।

शायद अब तुम थोड़ा भी ठहर जाओ तो यह मोहब्बत हो जाए,
पर तुम्हें हमारा साथ गवारा कहाँ,
कभी ये बेचैनियां पागलपन कहलाएंगी,
तो कभी हमारी जिक्र भी बस दूसरों की तरह हल्के में हिं सिमट कर रह जाएगी।।

हम तुम्हारे जिंदगी के पन्नों में हों न हों,
ये इश्क़ है, कभी सही तो कभी गलत हिं रहेगा।।

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रंग दोस्ती का|weekendpoetry

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रंग दोस्ती का
एक ज़माने से नहीं चढ़ा
तू वहां काम से है जुड़ा
मैं हूँ यहां मारा फिर रहा


यादें हि हैं बची अब
जो सालों में एक दफ़ा रंगीन हो जाती हैं
अनकहे से लाखों ख्वाइशें हैं
जो बस कहीं रोज़ सिम्मट जाती हैं


संग थें तो पल गुज़रते थें साथ में
चाहे वो बरसात हो या कोहरे से ढकी सांझ
सब याद आता है जैसे गुजरा हुआ हो जमाना
कुछ तुम्हारी यादों में कुछ अनसुने ख्वाबों में


हमने सपने ख़ूब देखें थें साथ में
कुछ को तो जिया था पर बहुत अनछुए से रह गयें
इस जिंदगी की दौड़ मैं
कुछ रिश्ते आगे तो हम बस पीछे रह गयें

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जाने दिया मैंने |weekendpoetry


उसे जाने दिया मैंने
क्योंकि वो मेरा हम-साया नहीं था
लाख जतन किया मैंने संभालने को
पर ये रिश्ता उसे कुछ समझ आया हि नहीं था
उसे जाने दिया मैंने
अब कौन बताए उसे
बर्बाद तो हुए हैं हम
पर साथ देने को उसका साया हि बहुत था।।
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This is You|weekendpoetry

musingabhi

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There’s a gap,
Prevailed by a silence,
Words which are half spoken,
But feelings stored untapped,
In the deep corner of the heart,
But each one of my beat reconciles it,
The name which I have stored deep inside,
Its echo can be felt in the whole universe,
The name which I murmur in my daily rituals,
Yes, this is you,
My unsung victory,
My ultimate decision,
My everything.

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इरादें |weekendpoetry

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देखा था उसे मैंने एक चौराहे पर
बिल्कुल अंजान, मेरा भी न था कोई पहचान
वो जिंदगी के कुछ तो जंग लड़ रही थी
उसके चेहरे पर एक अलग हिं रौनक़ रंग ले रही थी

मेरा रुकने का कोई कारण न होता
पर सामने बत्ती लाल थी
मैंने बचपन को तुम्हारे करीब से देखा, कुछ करता
तब तक, कुछ जिंदगी से जा चुकी थी

आंखें उसकी बेबाक़ थीं
इरादें भी कुछ सबसे अलग लग रहें थें
वो छोटी सी आंखों तले
हज़ारों सपने थें जो बस खुलने को बेताब थें

देखता हूँ रोज़ तुम्हें
कभी यहाँ सड़कों पर, कभी किसी गटर के किनारे
तुम्हारे इरादें मुझे पाक कर गयें
काम आ सकूँ किसी रोज़, जिंदगी में बस ये मुक़ाम रह गयें।

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